इंदौर में भागवत का भाषण: यह पहला मौका नहीं जब उन्होंने मुखर्जी का जिक्र किया

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Last Updated:January 15, 2025, 14:58 IST

Mohan Bhagwat: 2018 में जब मुखर्जी ने नागपुर में संघ के विजयादशमी कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में भाषण दिया था, तब यह माना गया था कि संघ और मुखर्जी के विचार एक जैसे हैं.

 यह पहला मौका नहीं जब उन्होंने मुखर्जी का जिक्र किया

संघ प्रमुख ने एक बार फिर प्रणब मुखर्जी का जिक्र किया रहै.

मघुपरना दास
वर्षों से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) प्रमुख मोहन भागवत ने धर्म परिवर्तन और धर्मनिरपेक्षता के मुद्दे पर संघ की सोच को प्रस्तुत करते समय पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी की बातों का बार-बार उल्लेख करते हैं. हाल ही में इंदौर में एक भाषण में भागवत ने प्राणब मुखर्जी का हवाला देते हुए कहा कि अगर ‘घर वापसी’ नहीं होगी तो आदिवासी समुदाय ‘देशद्रोही’ (देश के खिलाफ) बन सकते हैं.

भागवत ने पहले भी मुखर्जी के इस विचार का जिक्र किया था कि भारत की धर्मनिरपेक्षता उसकी 5,000 साल पुरानी परंपरा में गहरे रूप से निहित है. मुखर्जी के शब्दों का यह उल्लेख धर्मनिरपेक्षता और सांस्कृतिक पहचान पर भागवत की लगातार कोशिश का हिस्सा है, जिसमें वह संघ की सोच को देश के संवैधानिक सिद्धांतों के साथ जोड़ने का प्रयास कर रहे हैं, और धर्मांतरण को भारत की एकता और बहुलतावाद के लिए खतरे के रूप में प्रस्तुत कर रहे हैं.

संघ प्रमुख ने 2023 में प्रणब मुखर्जी के निधन के तीन साल बाद एक बार फिर उनके विचारों का हवाला दिया था. उन्होंने बताया था कि एक बार जब मुखर्जी अस्वस्थ थे तो उन्होंने उनसे मुलाकात की थी और मुखर्जी ने कहा था कि दुनिया को भारत को धर्मनिरपेक्षता और बहुलतावाद पर उपदेश देने की जरूरत नहीं है. क्योंकि ये मूल्य भारत की 5,000 साल पुरानी परंपरा में गहराई से निहित है. भागवत ने यह भी बताया कि उस समय संसद में धर्मांतरण पर बहस चल रही थी और मुखर्जी से मुलाकात के दौरान उन्होंने सवाल किया था कि एक आदिवासी जो धर्मांतरण करता है, उसका क्या होता है? तब भागवत ने जवाब दिया, “वह ईसाई बन जाते हैं.” इस पर मुखर्जी ने कहा, “नहीं, वह देशद्रोही बन जाते हैं.”

धर्मांतरण महत्वपूर्ण मुद्दा
भागवत ने आगे बताया कि संघ के लिए धर्मांतरण, खासकर आदिवासी समुदायों में, एक महत्वपूर्ण मुद्दा है. संघ इसे गैरकानूनी और जबरदस्ती मानता है. उनका कहना है कि धर्मांतरण के लिए यदि डर, दबाव या लोभ का इस्तेमाल किया जाता है, तो यह आदिवासियों को अपनी जड़ों से दूर कर देता है. लेकिन, भागवत ने यह भी साफ किया कि यदि धर्मांतरण कानूनी तरीके से किया जाए और पूजा पद्धतियां बदलें तो संघ को इसमें कोई समस्या नहीं है.

आदिवासी समुदाय में धर्मांतरण हमेशा से संघ के लिए चिंता का विषय रहा है. संघ ने छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, झारखंड और अन्य राज्यों में ‘घर वापसी’ के प्रयास किए हैं. मुखर्जी की बातों का बार-बार उल्लेख करके भागवत संघ को भारत के मूल्यों के साथ जोड़ने का प्रयास कर रहे हैं. वे धर्मांतरण को देश की सांस्कृतिक एकता और धर्मनिरपेक्षता के लिए खतरे के रूप में पेश कर रहे हैं.

2018 में जब मुखर्जी ने नागपुर में संघ के विजयादशमी कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में भाषण दिया था, तब यह माना गया था कि संघ और मुखर्जी के विचार एक जैसे हैं. उनके निधन के बाद भागवत ने उन्हें ‘मार्गदर्शक’ कहा और उनके विचारों का कई बार उद्धरण किया. भागवत के मौजूदा बयान यह संकेत देते हैं कि वे राजनीतिक, सांस्कृतिक और संवैधानिक विचारधाराओं को मिलाने की कोशिश कर रहे हैं, और मुखर्जी की धरोहर का उपयोग एक पुल के रूप में कर रहे हैं.

First Published :

January 15, 2025, 14:58 IST

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