मनमोहन सिंह ने सरकार को लगाया था दांव पर, PM मोदी ने उस सपने को दिया नया मुकाम

1 day ago

Last Updated:April 01, 2025, 05:01 IST

India-America Civil Nuclear Co-operation: भारत और अमेरिका ने न्‍यूक्लियर एनर्जी के क्षेत्र में सहयोग बढ़ाने के लिए साल 2005 से नए सफर की शुरुआत की थी. पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने अपने ही सरकार को दांव पर ...और पढ़ें

मनमोहन सिंह ने सरकार को लगाया था दांव पर, PM मोदी ने उस सपने को दिया नया मुकाम

डोनाल्‍ड ट्रंप की सरकार ने अमेरिकी कंपनी को भारत में सिविल न्‍यूक्लियर रिएक्‍टर की डिजाइन तैयार करने के साथ उसके निर्माण को भी अनुमति दे दी है. (फोटो: पीटीआई)

हाइलाइट्स

भारत-अमेरिका ने सिविल न्‍यूक्लियर करार को नए मुकाम तक पहुंचायापीएम मोदी और राष्‍ट्रपति डोनाल्‍ड ट्रंप की केमेस्‍ट्री का दिखने लगा असरअमेरिकी कंपनी को न्‍यूक्लियर रिएक्‍टर बनाने को मिल गई है अनुमति

नई दिल्‍ली. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और प्रेसिडेंट डोनाल्‍ड ट्रंप की दोस्‍ती का असर भारत और अमेरिका के द्विपक्षीय संबंधों पर भी दिखने लगा है. तकरीबन 20 साल पहले पूर्व प्रधानमंत्री डॉक्‍टर मनमोहन सिंह और पूर्व राष्‍ट्रपति जॉर्ज बुश ने मिलकर जो सपना देखा था, मोदी-ट्रंप युग में अब वह नए मुकाम तक पहुंच गया है. भारत और अमेरिका ने दो दशक के बाद सिविल न्‍यूक्लियर के क्षेत्र में बड़ा कदम बढ़ाया है. अमेरिकी ऊर्जा विभाग (DoE) ने एक अमेरिकी कंपनी को भारत में न्‍यूक्लियर एनर्जी रिएक्‍टर को संयुक्त रूप से डिजाइन और निर्माण करने की अनुमति देते हुए अंतिम मंजूरी दे दी है. भारत-अमेरिका सिविल न्‍यूक्लियर डील पर तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति जॉर्ज डब्ल्यू बुश ने साल 2007 में हस्ताक्षर किए थे, लेकिन योजनाओं को क्रियान्वित करने के लिए हरी झंडी मिलने में लगभग 20 साल लग गए.

बता दें कि अब तक भारत-अमेरिका सिविल न्‍यूक्लियर करार के तहत अमेरिकी कंपनियां भारत को परमाणु रिएक्टर और उपकरण एक्‍सपोर्ट कर सकती थीं, लेकिन उन्हें भारत में परमाणु रिएक्‍टर का डिजाइन या निर्माण करने से मना किया गया था. दूसरी तरफ, भारत इस बात पर अड़ा रहा कि डिजाइन, निर्माण और टेक्‍नोलॉजी ट्रांसफर से लेकर हर काम भारत में ही होना चाहिए. सरकारी आती और जाती रही, पर भारत का रुख एक ही रहा. कई सालों के बाद अमेरिका ने नई दिल्ली द्वारा तय की गई शर्तों पर सहमति जताई है. अमेरिकी और भारतीय कंपनियां अब संयुक्त रूप से छोटे मॉड्यूलर रिएक्टर या एसएमआर का निर्माण करेंगी. इससे जुड़े इक्विपमेंट का उत्‍पादन भी दोनों देश की कंपनियां मिलकर करेंगी. कूटनीति के लिहाज से इसे भारत की बड़ी सफला बताई जा रही है.

मनमोहन सिंह सरकार को दांव पर लगा दिया था
पूर्व प्रधानमंत्री ममनमोह सिंह की अगुआई में भारत और अमेरिका ने सिविल न्‍यूक्लियर के क्षेत्र में आगे बढ़ने की ठानी थी. उस वक्‍त मनमोहन सिंह की सरकार गठबंधन से चल रही थी, जिसमें वामपंथी पार्टियों का अहम योगदान था. लेफ्ट पार्टी ने असैन्‍य परमाणु डील पर अमेरिका के साथ आगे बढ़ने का पुरजोर विरोध किया था. इसके साथ ही सरकार से समर्थन वापस लेने की भी धमकी थी, लेकिन पूर्व पीएम मनमोहन सिंह अपने फैसले पर अडिग रहे. परिणाम यह हुआ कि लेफ्ट पार्टी ने सरकार से समर्थन वापस ले लिया. हालांकि, अन्‍य दलों के सहयोग से मनमोहन सरकार स्थिर रही और चलती रही. दूसरी तरफ, भारत-अमेरिका के बीच सिविल न्‍यूक्लियर डील पर दोनों देशों की तरफ से साल 2007 में हस्‍ताक्षर भी कर दिया गया. इस तरह साल 2005 से शुरू हुए सफर को एक अंजाम तक पहुंचाया गया. अब मोदी सरकार ने उसे नई ऊंचाई प्रदान की है.

समझौते की मुख्य बातें
परमाणु ऊर्जा में सहयोग – भारत को अमेरिका से परमाणु ईंधन और उन्नत तकनीक मिल सकेगी, जिससे बिजली उत्पादन बढ़ेगा.

परमाणु परीक्षण की शर्तें – भारत इस समझौते के तहत परमाणु परीक्षण नहीं करेगा, अन्यथा यह सहयोग खत्म हो सकता है.

आईएईए निगरानी – भारत के सिविलियन (गैर-सैन्य) परमाणु संयंत्रों की निगरानी अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (IAEA) करेगी.

एनएसजी से विशेष छूट – भारत को परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह (NSG) से छूट मिली, जिससे वह परमाणु व्यापार कर सकता है.

भारत की संप्रभुता बरकरार – इस समझौते के बावजूद, भारत अपने सामरिक (सैन्य) परमाणु कार्यक्रम को स्वतंत्र रूप से चला सकता है.

महत्व और प्रभाव
भारत को स्वच्छ और बड़े पैमाने पर ऊर्जा का स्रोत मिला, जिससे बिजली संकट कम करने में मदद मिलेगी.

अमेरिका और भारत के बीच रणनीतिक संबंध मजबूत हुए.

समझौते के कारण भारत को कई अन्य देशों से भी परमाणु ऊर्जा सहयोग के अवसर मिले.

Location :

New Delhi,Delhi

First Published :

April 01, 2025, 05:01 IST

homenation

मनमोहन सिंह ने सरकार को लगाया था दांव पर, PM मोदी ने उस सपने को दिया नया मुकाम

Read Full Article at Source