इस बार देश भर में जबर्दस्त बारिश, बाढ़ और हर जगह फट रहे बादल, क्यों हो रहा ऐसा

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Last Updated:August 26, 2025, 12:37 IST

The Havoc of Rain, Flood and Cloud Burst: कश्मीर के किश्तवाड़ और उत्तराखंड में अचानक बारिश, बाढ़ और भूस्खलन से भारी तबाही मची. देश भर में इस तरह की घटनाएं बढ़ गयी हैं, जानिए इसकी वजह क्या है?

इस बार देश भर में जबर्दस्त बारिश, बाढ़ और हर जगह फट रहे बादल, क्यों हो रहा ऐसाकश्मीर के किश्तवाड़ जिले के चशोती कस्बे में बाढ़ और भूस्खलन से हुई तबाही का दृश्य.

The Havoc of Rain, Flood and Cloud Burst: भारत के तमाम हिस्सों में अचानक और तेज बारिश के कारण भारी विभीषका का सामना करना पड़ रहा है. इसकी वजह से अचानक बाढ़ आ रही है, बड़े भूस्खलन हो रहा है और बहते कीचड़ और मलबे ने तबाही मचा रखी है. इसके कारण पूरे के पूरे इलाके मलबे के ढेर में बदल गए हैं. कश्मीर के किश्तवाड़ जिले के चशोती कस्बे में शुक्रवार को बाढ़ और भूस्खलन से कम से कम 60 लोग मारे गए और 200 से ज्यादा लापता हैं. जबकि महीने की शुरुआत में उत्तराखंड के एक गांव में बाढ़ के साथ मलबा तेजी से आया जिसमें कम से कम चार लोगों की मौत हो गई. मौसम विभाग के अधिकारियों का कहना है कि अधिकांश घातक बाढ़ और भूस्खलन अचानक और मूसलाधार बारिश के कारण हुए. इस तरह की बारिश को बादल फटना कहा जाता है.

वैज्ञानिकों का कहना है कि बारिश की ये चरम घटनाएं, चाहे वे बादल फटने की घटनाएं हों या लंबी अवधि तक मूसलाधार बारिश. इस पारिस्थितिक रूप से नाजुक क्षेत्र में अधिक बार और अधिक भयंकर होने वाली हैं क्योंकि जलवायु संकट तेज हो रहा है. इस बार की अत्यधिक बारिश, बाढ़ और बादल फटने की घटनाएं सिर्फ प्राकृतिक आपदा नहीं हैं. बल्कि ये जलवायु परिवर्तन और अनियोजित विकास का मिला-जुला परिणाम हैं. समुद्री तापमान का बढ़ना, बदलता मानसून पैटर्न और मानवीय अतिक्रमण जैसी गतिविधियां इन घटनाओं की तीव्रता और फ्रीक्वैंसी को बढ़ा रही हैं. इनमें से कुछ प्रमुख कारण इस प्रकार हैं:

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जलवायु परिवर्तन
बढ़ता समुद्री तापमान:
ग्लोबल वार्मिंग के कारण समुद्र का तापमान बढ़ रहा है, जिससे हवा में नमी की मात्रा बढ़ जाती है. वैज्ञानिकों के अनुसार तापमान में 1 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि से हवा में लगभग 7% अधिक नमी जमा हो सकती है. यही नमी भरी हवा भारी बारिश और बादल फटने जैसी घटनाओं को और भी ज्यादा तीव्र बना देती है. हिमालय क्षेत्र की विशाल श्रृंखलाओं में हजारों ग्लेशियर हैं, जो दुनिया के गर्म होने के साथ-साथ तेजी से पिघल रहे हैं और अपना आकार खो रहे हैं. हालांकि हिमनदों के पिघलने से सीधे तौर पर बादल फटने की घटनाएं नहीं होती हैं, लेकिन इससे अस्थिर झीलें और नाजुक भूभाग बनते हैं. जो बाढ़ और भूस्खलन के माध्यम से उनके प्रभाव को और बदतर बना सकते हैं.

अनियमित मानसून पैटर्न: जलवायु परिवर्तन के कारण मानसून का पैटर्न भी बदल रहा है. अब मानसून के दौरान कम दिनों में ही बहुत अधिक बारिश हो रही है, जबकि पहले बारिश अधिक दिनों तक होती थी. जिससे पानी गिरने का औसत सामान्य रहता है. हालांकि कुछ क्षेत्रों में सूखा पड़ रहा है तो वहीं कुछ क्षेत्रों में अचानक और अत्यधिक बारिश से बाढ़ आ रही है. जिनके कारण हाल के दशकों में भारत भर में भारी वर्षा की घटनाएं तीन गुना बढ़ गई हैं.

मौसम संबंधी कारक
कम दबाव का क्षेत्र:
बंगाल की खाड़ी और अरब सागर में बनने वाले कम दबाव के क्षेत्र और डिप्रेशन सिस्टम समुद्र से नमी खींचकर भारी बारिश लाते हैं. ये सिस्टम अक्सर मानसून के दौरान बनते हैं और इनका मार्ग बदल सकता है, जिससे अप्रत्याशित स्थानों पर भारी बारिश होती है. दक्षिण-पश्चिम मानसून के मौसम के दौरान भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश के कुछ हिस्सों में हिंद महासागर और अरब सागर से आने वाली हवाओं के कारण वार्षिक वर्षा होती है. 

पहाड़ों का प्रभाव: बादल फटने की ज्यादातर घटनाएं पहाड़ी इलाकों में होती हैं. जब नमी से भरी गर्म हवाएं समुद्र से उठकर पहाड़ों से टकराती हैं, तो वे ऊपर उठने लगती हैं. ऊपर ठंडी हवा से मिलने पर ये नमी घने बादलों में बदल जाती है. जब ये बादल बहुत भारी हो जाते हैं और हवाएं उन्हें आगे बढ़ने से रोकती हैं, तो सारा पानी अचानक एक ही जगह पर गिर जाता है. जिसे बादल फटना कहा जाता है. भारतीय मौसम विभाग बादल फटने को 100 मिमी (4 इंच) प्रति घंटे से अधिक वर्षा दर के रूप में परिभाषित करता है. एक विशेषज्ञ ने बताया, “हिमालय, काराकोरम और हिंदू कुश अपनी खड़ी ढलानों, नाजुक भूविज्ञान और संकीर्ण घाटियों के कारण विशेष रूप से असुरक्षित हैं, जो तूफानी बारिश को विनाशकारी धाराओं में बदल देते हैं.”

जंगल की कटाई और अनियोजित निर्माण: पहाड़ों पर पेड़ों की कटाई और अस्थिर ढलानों पर बिना किसी योजना के निर्माण से भूस्खलन का खतरा बढ़ जाता है. जब भारी बारिश होती है तो ये निर्माण और कमजोर हुई जमीन फ्लैश फ्लड (अचानक आई बाढ़) और भूस्खलन को बढ़ावा देते हैं जिससे तबाही और भी बढ़ जाती है. वनों की अनियंत्रित कटाई और अनियोजित विकास के साथ मिलकर यह एक घातक संयोजन बनता है. भारी वनों की कटाई के कारण किसी भी मूसलाधार बारिश और बादल फटने से भूस्खलन होगी यानी मिट्टी धंसेगी वे अपने साथ पत्थर और लकड़ी लाएंगे. 

नदी के किनारे अतिक्रमण: कई जगहों पर लोग और बिल्डर्स नदी के किनारे तक निर्माण कर लेते हैं. इससे नदी के बहाव का रास्ता बाधित हो जाता है. जब बाढ़ आती है तो पानी अपना रास्ता बनाता है और इन अवैध निर्माणों को बहा ले जाता है, जिससे जान-माल का भारी नुकसान होता है. ऐसे में अक्सर भारी संख्या में लोग हताहत होते हैं. क्योंकि पहाड़ों में बहुत अधिक संख्या में लोग जल निकायों के किनारे रहते हैं और बचने का समय बहुत सीमित होता है.

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Location :

New Delhi,Delhi

First Published :

August 26, 2025, 12:37 IST

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