Last Updated:January 13, 2025, 17:29 IST
Bahurupi folk art artist: परंपरागत बहुरूपी कला, जो कभी महाराष्ट्र की पहचान थी, आज मोबाइल और इंटरनेट के युग में गुमनामी की कगार पर है. आर्थिक तंगी और नई पीढ़ी की उदासीनता के चलते इस लोक कला के अस्तित्व पर सवाल खड़े हो रहे हैं.
बहुरूपी कला महाराष्ट्र की प्राचीन और अद्वितीय लोक कला है, जो समाज को मनोरंजन के साथ-साथ सामाजिक संदेश भी देती है. ये कलाकार विभिन्न किरदारों में ढलकर लोगों को गुदगुदाते और प्रेरित करते थे. परंपरागत मेले, धार्मिक आयोजनों और गांवों के उत्सवों में बहुरूपी कलाकारों की विशेष भूमिका होती थी. लेकिन समय के साथ यह कला अब विलुप्ति के कगार पर पहुंच गई है.
मोबाइल और इंटरनेट ने छीना मंच
मोबाइल और इंटरनेट के बढ़ते उपयोग ने बहुरूपी कलाकारों के लिए चुनौतियां खड़ी कर दी हैं. आज मनोरंजन के तमाम डिजिटल विकल्प उपलब्ध हैं, जिससे लोग इस पारंपरिक कला से दूर होते जा रहे हैं. अब लोग ऑनलाइन शॉर्ट वीडियो और वेब सीरीज देखकर अपनी मनोरंजन की जरूरतें पूरी कर लेते हैं, जिससे बहुरूपी कलाकारों के पास काम की कमी हो गई है.
आर्थिक तंगी से जूझते कलाकार
बहुरूपी कलाकारों के लिए यह दौर बेहद कठिन हो गया है. जिन परिवारों ने पीढ़ियों तक इस कला को जीवित रखा, वे अब आर्थिक तंगी का सामना कर रहे हैं. इन कलाकारों के पास न तो स्थायी आय का साधन है और न ही उन्हें सरकारी मदद मिलती है. उनके पारंपरिक परिधान और सामग्री भी महंगे हो गए हैं, जिससे उनका काम करना और मुश्किल हो गया है.
नई पीढ़ी ने किया किनारा
बहुरूपी कलाकारों की अगली पीढ़ी इस कला को अपनाने से बच रही है. उनके सामने न सिर्फ आर्थिक समस्याएं हैं, बल्कि उन्हें समाज में सम्मान भी नहीं मिलता. आज की युवा पीढ़ी बेहतर नौकरी और आधुनिक जीवनशैली की तलाश में इस कला को छोड़ रही है, जिससे यह परंपरा धीरे-धीरे खत्म हो रही है.
सरकार और समाज की ज़िम्मेदारी
बहुरूपी कला को बचाने के लिए सरकार और समाज को आगे आना होगा. इन कलाकारों को मंच और रोजगार के अवसर देने की जरूरत है. साथ ही, स्कूली पाठ्यक्रमों में इस कला को शामिल कर नई पीढ़ी को इसके महत्व से अवगत कराया जा सकता है. सरकार को बहुरूपी कलाकारों के लिए विशेष योजनाएं बनानी चाहिए, ताकि उनकी आर्थिक स्थिति सुधर सके.
First Published :
January 13, 2025, 17:29 IST